क्या है मुड़िया मेला; 493 साल पहले मथुरा में क्यों और कैसे शुरू हुआ?
Go Back |
Yugvarta
, Jul 07, 2025 07:31 PM 0 Comments
0 times
0
times
Lucknow :
वृंदावन से लेकर पूरे जिले भर में पूरे साल बड़े स्तर पर धार्मिक आयोजन होते रहते हैं. जिसमें देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु पुहंचते हैं. जहां द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने अपने ग्वाल वाल और बृजवासियों की रक्षा के लिए कन्नी उंगली पर विशाल गोवर्धन पर्वत को उठाया था. वहीं, फाग उत्सव की तरह गोवर्धन में लगने वाला मुड़िया मेला विश्वप्रसिद्ध है. एक सप्ताह तक लगने वाले इस मेले में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं, जिसमें विदेशी भी होते हैं. मुड़िया मेला 4 से 11 जुलाई तक चलेगा. ऐसे में आइए जानते हैं कि इस मेले की कब और कैसे शुरुआत हुई. इस मेले के पीछे धार्मिक मान्यता क्या है?
468 वीं शोभायात्रा निकाली जाएगीः देशभर में जिस दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. चतुर संप्रदाय में से एक गौडिया संप्रदाय के मुड़िया संत अपने गुरु की याद में प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इसी के उपलक्ष्य में गोवर्धन में मुड़िया मेला लगता है. राजकीय मेला साधु संत देश और विदेश से आने वाले भक्त भक्ति में रम जाते हैं. गोवर्धन में स्थित प्राचीन श्री श्याम सुंदर मंदिर के मुड़िया संत गुरु पूर्णिमा के दिन इस बार 468 वां शोभायात्रा निकालेंगे. ढोल नगाड़े बंद बजे झांझ मंजीरा के साथ शोभायात्रा निकाली जाएगी. देश और विदेश से हजारों श्रद्धालु इस शोभा यात्रा में गोवर्धन पहुंचते हैं. भव्य शोभायात्रा सबकी जुबान पर एक ही नाम हरे कृष्णा हरे रामा हरे कृष्णा हरे राम रहता है.
मथुरा के गोवर्धन में 21 कोस की परिक्रमा करने वाला मुड़िया मेला शुरू हो गया है। मेला गुरु पूर्णिमा के दिन मुख्य रूप से मनाया जाता है, लेकिन यहां रौनक अगले कई दिनों तक रहती है। मुड़िया पूर्णिमा मेले के बारे में कहा जाता है कि इसकी परंपरा चैतन्य महा प्र
चैतन्य महाप्रभु वो नाम जो भगवान श्री कृष्णा और राधा की भक्ति में लीन रहते थे. वे कृष्ण के अवतार माने जाते थे. 18 फरवरी 1486 में चैतन्य महाप्रभु का जन्म पश्चिम बंगाल के मायापुर (नवदीप) में हुआ था. चैतन्य महाप्रभु की माता का नाम शाचि देवी पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र था. चैतन्य महाप्रभु 24 वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया और जीवन के अंतिम दिनों में पुरी जगन्नाथ चले गए. 15वीं शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु ने भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का मंचन किया था. जिसके बाद चैतन्य महाप्रभु को कई नाम से पुकारा जाने लगा. विशंभर मिश्र, निमाई पंडित, चेतन, गौर हरि, गौर सुंदर, गोरागड़ के नाम से विख्यात हुए. चैतन्य महाप्रभु की मृत्यु 1532 में पुरी में हुई थी. चैतन्य महाप्रभु ने 500 वर्ष पूर्व एक भविष्यवाणी की थी कि संकीर्तन भगवान श्री कृष्ण की नाम का जाप करने से सभी कष्ट दुखों से दूर हो जाएंगे और देश दुनिया भर में कीर्तन किया जाएगा. इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी, भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया था.