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#जी20 अध्यक्षता शिखर सम्मेलन:भारत के लिए “यह एक ऐतिहासिक क्षण"
Go Back | Yugvarta , Sep 09, 2023 08:38 PM
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News Image Lucknow :  यह एक ऐतिहासिक क्षण है कि भारत की जी20 अध्यक्षता शिखर सम्मेलन के पहले दिन ही न्यू दिल्ली लीडर्स डिक्लरेशन को अंतिम रूप देने में सक्षम रही। इसका सबसे महत्वपूर्ण घटक सतत भविष्य के लिए ‘हरित विकास समझौता’ है। मैं, इसके लिए आपस में एकजुट होने के लिए भारत की अध्यक्षता और जी20 को बधाई देना चाहता हूं। यह हरित विकास समझौता क्यों महत्वपूर्ण है? इस साल हमने उत्तरी अमेरिका से लेकर यूरोप और एशिया तक जलवायु से जुड़ी आपदाओं को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में झकझोरते हुए देखा है, और यह साल भी सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल

इसका सबसे महत्वपूर्ण घटक सतत भविष्य के लिए ‘हरित विकास समझौता’ है। मैं, इसके लिए आपस में एकजुट होने के लिए भारत की अध्यक्षता और जी20 को बधाई देना चाहता हूं।

करने की 2030 तक की कार्ययोजना के मध्य बिंदु है। ऐसे में, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोविड महामारी से उबरते हुए विकास का हमारा जो भी रास्ता हो, उसमें हरित और साझेदारीपूर्ण रास्ते शामिल हों। यही कारण है कि यह हरित विकास समझौता अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इसके लिए कुछ बातें बहुत अहम हैं। हरित विकास समझौते का *पहला महत्वपूर्ण घटक* संसाधन कुशलता और सतत उपभोग के महत्व पर ध्यान केंद्रित करना है। इस बात को सतत विकास के लिए जीवनशैली को मुख्यधारा में लाते हुए रेखांकित किया गया है। इसमें सतत विकास के लिए जीवनशैली पर उच्च-स्तरीय सिद्धांत शामिल हैं। *दूसरा प्रमुख घटक* स्वच्छ, सतत, न्यायसंगत, किफायती और समावेशी ऊर्जा परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करना है। यह ऊर्जा परिवर्तन व्यक्तियों, विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं और भौगोलिक क्षेत्रों को करीब लाने की कोशिश कर रहा है, जहां विकास के लिए बड़े बुनियादी ढांचों को विकसित किया जाएगा, लेकिन जिन्हें स्वच्छ ऊर्जा के बुनियादी ढांचे से संचालित करने की जरूरत है। इसी कारण से वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस) की घोषणा, ग्रीन हाइड्रोजन के लिए पारिस्थितिकी तंत्र और एक हरित हाइड्रोजन नवाचार केंद्र का निर्माण, और पूरी दुनिया में 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना अत्यंत महत्वपूर्ण कदम बन जाता है। *तीसरा महत्वपूर्ण घटक* जलवायु और सतत वित्त पर ध्यान केंद्रित करना है। भारत की जी20 अध्यक्षता ने इस बात को लगातार रेखांकित किया है कि हमें ग्लोबल साउथ (विकासशील, अल्पविकसित या अविकसित देश) में रहने वाले अरबों लोगों के लिए खरबों की पूंजी की आवश्यकता है। स्वच्छ ऊर्जा निवेश और एसडीजी पर समग्रता से ध्यान केंद्रित करने के लिए खरबों डॉलर की इस आवश्यकता को रेखांकित करना ही एसडीजी के व्यापक एजेंडे में स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु गतिविधियों के घटकों को सम्मिलित कर देता है। मेरे हिसाब से, *चौथा महत्वपूर्ण घटक* महासागर आधारित ब्लू इकोनॉमी के सिद्धांत हैं। यह न केवल जलवायु प्रणाली को संचालित करने में हमारे महासागरों की भूमिका को स्वीकार करने के लिए है, बल्कि यह भी समझने के लिए है कि इस महत्वपूर्ण संसाधन को नुकसान पहुंचाने और फिर इसे स्वच्छ बनाने का प्रयास करने से काफी पहले हमें कैसे महासागर-आधारित संसाधनों का सतत उपयोग करना चाहिए। *पांचवां और अंतिम महत्वपूर्ण घटक*, आपदा का सामना करने में सक्षम बुनियादी ढांचे का निर्माण करना है। निश्चित तौर पर, भारतपहले आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के गठबंधन को प्रोत्साहित कर चुका है। लेकिन अब हमारे पास एक नया आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्य समूह भी है, जिसे भारत ने जी20 में पेश किया है। इस प्रकार इन सभी अलग-अलग घटकों को एक साथ लाना हरित विकास समझौता है। यह समझौता न केवल विकास के लिए ग्लोबल साउथ की जरूरतों और हरित व सतत होने के क्रम में धरती की आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करता है, बल्कि उत्तर (विकसित देश) और दक्षिण (विकासशील देश) के बीच सेतु का भी काम करता है, जो कोई भी समझौता संपन्न होने के लिए जरूरी है।”

डॉ. अरुणाभा घोष, सीईओ, काउंसिल ऑन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू)
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