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होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह :: बुल्ले शाह
Go Back | Yugvarta , Mar 13, 2025 12:02 AM
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News Image देहरादून :  लखनऊ 12 मार्च युगवार्ता : प्रखर प्रकाश मिश्रा
इस बार होली का त्यौहार 14 मार्च को खेला जाएगा इत्तेफाक की बात यह है कि इसी दिन इस बार शुक्रवार है लेकिन रमजान भी इसी महीने में पड़े हैं यह पहली बार नहीं है जब इस रमजान और होली आसपास ना पड़े हो या लेकिन धर्म के ठेकेदारों ने हिंदू और मुसलमान के बीच जुम्मे की नमाज को लेकर सियासत तेज कर दी है उत्तर प्रदेश के संभल और शाहजहांपुर से लेकर बिहार तक में मजहबी ठेकेदारों के नफरतें बयान सामने आ रहे हैं हालांकि सरकार ने होली पर रंग

फूलों में तो बहुत से रंग होते हैं मैं तो इतना ही जानता हूं कि फूल सिर्फ अमन और शांति का रंग बिखरते हैं और उनकी खुशबू से सुकून मिलता है

खेलने और नमाज पढ़ने के लिए अलग अलग समय तय कर दिया है और माहौल को शांतिपूर्ण रखने के लिए जबरदस्त इंतजाम किए हैं
अफसोस तो इस बात का है धर्म के ठेकेदार शांति और अमन की जगह दोनों ही पक्षों को भड़काने में लगे हैं जबकि बुल्ले शाह कहते हैं होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह

बुल्ले शाह

होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह
नाम नबी की रतन चढ़ी बूँद पड़ी अल्लाह अल्लाह

रंग-रंगीली ओही खिलावे जो सखी होवे फ़ना-फ़िल्लाह
होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह

अलस्तो-बे-रब्बेकुम पीतम बोले सब सखियाँ ने घुँघट खोले
क़ालू-बला ही यूँ कर बोले ला-इलाहा इल-लल्लाह

होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह
नहनो-अक़रब की बंसी बजाई मन-अरफ़-नफ़्सह की कूक सुनाई

फ़सम्मा वज्हुल्लाह की धूम मचाई विच दरबार रसूलल्लाह
होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह

हाथ जोड़ कर पाँव पड़ुँगी आजिज़ हो कर बिंती करूँगी
झगड़ा कर भर झोली लूँगी नूर मोहम्मद सल्लल्लाह

होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह
फ़ज़कुरूनी की होरी बनाऊँ वश्कुरूली पिया को रिझाऊँ

ऐसे पिया के मैं बल-बल जाऊँ कैसा पिया सुब्हान-अल्लाह
होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह

सिब्ग़तुल्लाह की भर पिचकारी अल्लाहुस-समद पिया मुँह पर मारी
नूर नबी दा हक़ से जारी नूर मोहम्मद सल्लल्लाह

'बुल्लिहा' शौह दी धूम मची है ला-इलाहा इल-लल्लाह
होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह
दिक्कत तो यह है क्या मुसलमान रंगों से इतनी नफरत करते हैं कि वह मिठाइयां नहीं खाएंगे क्योंकि उनमें रंग पड़ा होता है क्या हिंदुओं के साथ तिजारत नहीं करेंगे जहां नफा है वह अपना नफा छोड़ देंगे, क्या हिंदुओं को सब्जियां नहीं बेचेगे? उन्हें फल नहीं बेचेंगे उन्हें कपड़े और पोशाके नहीं बेचेंगे क्योंकि उनसे जो पैसा मिलेगा वह तो हिंदुओं की कमाई से मिलेगा क्या हिंदू दुल्हनों और दुलहो की पोशाकें नहीं सिलेंगे क्या खेतों में यह पूछ कर फसले उगाई जाएगी की जो भी अनाज होगा वह सिर्फ हिंदुओं को दिया जाएगा उसमें मुसलमान का हिस्सा नहीं होगा क्या दरख्तों के ऊपर यह कहकर फसले उगाई जाएगी और फल उतारे जाएंगे कि इन्हें हिंदुओं को नहीं बेचा जाएगा फूलों की खेती भी अब यह पूछ कर होगी यह फूल केवल मजारों पर और मस्जिदों में जाएंगे, फूलों को हिंदू देवी देवताओं को नहीं चढ़ाया जाएगा फूलों में तो बहुत से रंग होते हैं मैं तो इतना ही जानता हूं कि फूल सिर्फ अमन और शांति का रंग बिखरते हैं और उनकी खुशबू से सुकून मिलता है रंगरेज अब हिंदू बहन बेटियों के दुपट्टे रंगने छोड़ देंगे यह ऐसे सवाल हैं जिन पर जनता को खुद विचार करना होगा। मौलाना या पंडितों के कहने से उन पर असर नहीं होना चाहिए जो आपकी आत्मा सही कह जो सही हो दिल की पुकार वही काम करना चाहिए मैंने ऊपर आपको बुल्ले शाह के जरिए बताया है और कुछ बड़े मुसलमान शायरों के कलाम देखिए
होली हिंदू-मुस्लिम दोनों ही संप्रदाय के बीच मेल मिलाप का अवसर है. कृष्ण भगवान को होली अति प्रिय थी और रसखान उनके बड़े भक्त थे. रसखान ने राधा कृष्ण की होली का सरस चित्रण अपने पदों में किया है.

‘मोहन हो ही होरी
काल्ह हमारे आंगन गारो दै आयो सो कौ है री
अब क्यों बैठे जसोदा ढिग निकसो कुंजबिहारी



होली की गीतों को फाग कहा जाता है क्योंकि होली का त्यौहार वसंत ऋतु यानी फागुन में मनाया जाता है. बहादुर शाह जफर ने होली पर पारम्परिक रागों में फागे लिखी है. उनकी होली विषयक नज्म में ब्रज और बुंदेलखंड के गांवों की होली का चित्रण साफ है.

क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी
देखो कुंवर जी दूंगी मैं गारी

भाग सकूं मैं कैसे मो सों भाग नहीं जात
ढाढ़ी अब देखूं और को सन्मुख आत
मो पे रंग की मारी पिचकारी
देखो कुंवर जी दूंगी मैं गारी

भाग सकूं मैं कैसे मो सों भाग नहीं जात
ढाढ़ी अब देखूं और को सन्मुख आत

बहुत दिनन में हाथ लगे हो कैसे जाने दूं
आज फगवा तोसो का पीठ पकड़ कर लूं फगवा तोसो का पीठ पकड़ कर लूं



मेंटर अकबर के नवरत्न में से सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ मियां तानसेन होली के पर्व पर जनसामान्य के साथ होली समारोहों में 12 सम्मिलित होते और होली के पद गाते थे-

‘लंगर बंटवार खेले होरी
बाट घाट कोउ निकसि न पावै पिचकारिन रंग बोरी

मै जु गई जमुना जल भरन, गहि तुम भीजी रोरी
तानसेन प्रभु नंद को ढोरा बरज्योंन मानत मोरी

ख्वाजा हैदर अली ‘आतिश’ लखनऊ के मशहूर शायर थे. उनके जीवन में भी होली पर शेर मिलते है.

खाके शहीदे नाज से भी होली खेलिये,
रंग इसमे हैं गुलाब का बूं है अबीर की

नजीर अकबरावादी (1735-1830 ई.) लोक प्रिय शायर ने होली पर सबसे अधिक नज्में लिखीं, नजीर का मानना था कि होली सिर्फ हिंदुओं का त्यौहार नहीं बल्कि सांझा त्यौहार है.

नजीर होली का मौसम जो जग में आता है,
वह ऐसा कौन है होली नहीं मनाता है

कोई तो रंग छिड़कता है कोई तो गाता है
जो खाली रहता है वो देखने आता है

होली के रंगों में सरोबोर नजीर अपनी होली की शायरी में होली के दृश्य चित्रित करते हुए.

गुलजार खिले हो परियो के औ मजलिस की तैयारी हो
कपड़ों पर रंग के छीटों से खुशरंग अजब गुलकारी हो

मुंह लाल, गुलाबी आंखें हो औ हाथों में पिचकारी हो7
उस रंग भरी पिचकारी को अंगियां पर तक कर मारो हो

फायज देहलवी अठारवीं सदी के आरंभ के एक मशहूर शायर थे वे औरंगजेब के अंतिम दौर से मुहम्मद शाह के युग (1719-1748 ई.) तक जीवित रहे. उनकी रचना ‘तारीफे होली’ में दिल्ली में होली खेलने का विशेष वर्णन मिलता है.

‘ले अबीर और अरगजा भर कर रुमाल
छिड़कते है और उड़ाते हैं गुलाल

ज्यू झड़ी हर सू है पिचकारी की धार
दौड़ती है नारियां बिजली की सार

मीर (1772-1810 ई.) ने होली पर दो मस्नवियां और एक गजल लिखी है.

होली खेला आसुफद्दौला वजीर
रंग सुहबत से अजब है खुर्दो पीर



बीजापुर और गोलकुण्डा के जिन शायरों ने होली पर नज्में लिखी हैं उनमें कुली कुतुबशाह का नाम सर्वोपरि है.

बसंत खेले इश्क की आ पियारा
तुम्हीं मैं चांद में हूं जू सितारा

जोबन के हौजखाने में रंग मदन भर
सू रोमा रोम चर्किया लाए धारा

नबी सदके बसंत खेल्या कुतुबशाह
रंगीला हो रहिया तिरलोक सारा

हातिम भी इसी दौर के एक बड़े शायर थे उनकी नज्में भी होली पर मिलती हैं. उन्होंने अपने शेरों में स्त्रियों और पुरुषों के आपस में होली खेलने के दृश्य का संजीव चित्रण किया है.

मुहैया सब है अब असबाबे होली
उठो यारो भरो रंगों से झोली

इधर यार उधर खूबां सफआरा
तमाशा है तमाश है तमाश
एक से एक दानिश मद ने सिर्फ इंसानियत और प्रेम मोहब्बत को ही सही ठहराया है ईद में भी लोग गले मिलते हैं और होली में भी तो फिर यह नफरतें किस लिए आई मिलकर त्योहार मनाए हिंदुस्तान के गुलशन को महकाए। सरकार को सरकार का काम करने दीजिए अगर वह मस्जिदों को ढक रही है तो यह इस देश में पहली बार नहीं है इस देश में मंदिर भी ढके गए और मस्जिद भी ढकी गई लेकिन देश का ताना-बाना हिंदू और मुसलमान से मिलकर बना है हमें नमाज भी पढ़नी है और होली भी खेलनी हैं तो लिए साथ मिलकर कहें सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा
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