ये है अनोखा भूतों का स्कूल, जहां रात 12 बजे के बाद शुरु होती है पढ़ाई
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Yugvarta
, Oct 18, 2021 09:14 PM 0 Comments
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Delhi :
आपने कई बार भूतों की कहानियां सुनी और पढ़ी होंगी. ये भी हो सकता है कि आपको भूत प्रेत में विश्वास ही न हो और उन्हें अनसुना कर देते हों. आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी बताने जा रहे हैं जो एक स्कूल से जुड़ी है. जहां दिन में नहीं बल्कि रात में पढ़ाई शुरु होती है. ये स्कूल उत्तराखंड में स्थित है. दरअसल, ये डरावन सच है कि उत्तराखंड के एक स्कूल में रात में पढ़ाई होती है. पढ़ने और पढ़ाने वाले भी इंसान नहीं बल्कि इंसानों जैसे दिखने वाले विचित्र लोग होते हैं. बताया जाता है कि कई साल पहले इस स्थान पर मरने वाले लोगों की आत्मायें छात्र और शिक्षक के रूप में नजर आती हैं. बात करीब 60-65 साल पुरानी है. वहां रहने वाला श्वेतकेतु नाम का एक व्यक्ति उस वक्त डर गया जब उसने रात के समय खंडहर हो चुकी एक इमारत में रोशनी देखी. जहां कुछ लोग पढ़ रहे थे और कुछ पढ़ा रहे थे.
उस दिन श्वेतकेतु अपनी दुकान बंद करके देर रात घर लौट रहे थे तभी उन्हें अचानक बस्ती के पास एक ही स्थान पर लाइट जलती हुई नजर आई. श्वेतकेतु ये देखकर हैरान रह गए. क्योंकि उनकी बस्ती में तब लाइट ही नहीं थी और ना ही बिजली की लाइन. श्वेतकेतु हैरान थे कि एक ही दिन में उस बस्ती से दूर उस छोटे से स्थान पर लाइट की व्यवस्था कैसे हो गई. इस बात को जानने के लिए वह उस स्थान पर पहुंच गए. उसके बाद उन्होंने वहां का जो नजारा देखा वह बहुत ही डरावना था. श्वेतकेतु ने देखा कि पुराने हो चुके उस खंडहर भवन में कुछ लोग पढ़ते और कुछ लोग पढ़ा रहे हैं. ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई स्कूल चल रहा हो. वे लोग बेहद डरावने लग रहे थे. उनकी आंखें बिल्लियों तरह चमक रही थी. वे आपस में चीखते और चिल्लाते हुये पढ़ और पढ़ा रहे थे.
उस डरावना दृश्य देखकर दिसंबर की ठंड में भी श्वेतकेतु को पसीना आ गया और वह वहां से डरकर भागने लगा. घर पहुंचकर उसने चैन की सांस ली. श्वेतकेतु जब अपने घर पहुंचे तो रात का ढाई बज चुका था. उन्होंने रात के समय में घर के किसी व्यक्ति ये सब बताना उचित नहीं समझा. सुबह होते ही उन्होंने सब बात अपने पिता को बताई. तब उनके पिता ने उनको जो कहानी सुनाई वह और भी अधिक चौंकाने वाली थी. उनके पिता ने उन्हें बताया कि साल 1952 में समाज सेवक एम. राघवन ने छोटे बच्चों के एक स्कूल को बनाने लिए चंदा एकत्र कर बस्ती से बाहर एक छोटा सा भवन बनवाया, ताकि जिसमें बस्ती के छोटे बच्चों की पढ़ाई लिखाई शुरु की जा सके.
समाजसेवी एम.राघवन का यह सपना साकार हो गया. स्थानीय लोगों की आर्थिक सहयोग से स्कूल बनकर तैयार हो गया और उसमें पढ़ाई लिखाई भी शुरू हो गई . लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जो बहुत दर्दनाक था. श्वेतकेतु के पिताजी ने बताया कि उस दिन स्कूल का वार्षिक उत्सव था. स्कूल के सारे स्टाफ और छात्र-छात्राएं एनुअल फंक्शन की तैयारी में लगे थे. दोपहर बारह बजे के आसपास तीव्र गति का भूकंप आ गया और दुर्भाग्यवश स्कूल की छत धरासायी हो गई. जिसके कारण स्कूल के कई अध्यापक, कर्मचारी और बच्चे स्कूल की छत के नीचे दब कर मर गए.
उस हादसे के कुछ दिन बात स्कूल की छत की मरम्मत कर फिर से पढ़ाई शुरु कर दी गई. लेकिन भूकंप की उस दुर्घटना के कारण वहां होने वाली अकाल मौतों के बाद विद्यालय में अनहोनी घटनायें शुरू हो गईं. बताया जाता है कि एक बार उस स्कूल में एक बच्चा लंच कर रहा था. उस समय वह क्लास में अकेला ही था. तभी उस बच्चे को ऐसा लगा कि अचानक किसी ने उसका लंच बॉक्स उठाकर उसके सर पर दे मारा. इससे उसके सिर पर गहरी चोट आ गई. वह दर्द से चिल्लाने लगा और फिर उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया. ऐसा ही कुछ एक दिन स्कूल के एक टीचर के साथ हुआ.
टीचर क्लास में पढ़ा रहे थे तभी उन्हें लगा कि क्लास में कोई घुसा और उनके कंधे पर बैठकर उनके कान पकड़कर खींचने लगा. टीचर दर्द से कराहने लगे. ऐसी ही कई घटनाओं के कारण लोगों ने इस स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजना बंद कर दिया. तब से लोग समझने लगे कि भूकंप के कारण स्कूल के मलबे में दबकर मर गये बच्चे और शिक्षक भूत बनकर स्कूल में रहते हैं और अब ये प्रेत आत्माओं के साए से घिर गया है. फिर धीरे-धीरे उत्तराखण्ड का वह भूतिया स्कूल खंडहर में बदल गया. अब वह स्थान लोगों के लिए उपेक्षित स्थान बन गया है. आम लोग वहां जाने से डरने लगे हैं.