» आलेख
जब-जब मोदी खामोश हुए — शाश्वत तिवारी
Go Back | Yugvarta , May 21, 2025 05:00 PM
0 Comments


0 times    0 times   

News Image Lucknow : 
गुजरात में गोधरा कांड के बाद नरेंद्र मोदी की चौबीस घंटे की खामोशी ने, न केवल दंगों की आग पर नियंत्रण पाया, बल्कि एक ऐसा उदाहरण भी प्रस्तुत किया जिसने तथाकथित 'माफिया वर्चस्व' को समाप्त कर राज्य को स्थायित्व की ओर अग्रसर किया। यह वही गुजरात है, जिसका कच्छ और सरक्रीक क्षेत्र पाकिस्तान की सीमा से सटा हुआ है। इसके बावजूद आज गुजरात भारत के सबसे शांत, स्थिर और तेज़ी से प्रगति करने वाले राज्यों में गिना जाता है।

इशरत जहां / सोहराबुद्दीन मुठभेड़ प्रकरण:
इन विवादित मुठभेड़ों के दौरान मोदी और अमित शाह पर अनेक आरोप लगे। न्यायपालिका, मीडिया, विपक्षी दल और तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग लगातार हमलावर रहे। अमित शाह को जेल भी हुई, परंतु मोदी ने तब भी सार्वजनिक रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। खामोशी उनका कवच बनी रही। एजेंसियों ने एक निर्वाचित मुख्यमंत्री से घंटों पूछताछ की, लेकिन मोदी ने जनता के सामने मौन रहना ही उपयुक्त समझा। परिणामस्वरूप, विधानसभा चुनावों में जनता ने उन्हें फिर से भारी बहुमत से मुख्यमंत्री चुना।

उड़ी हमला:
इस हमले के बाद राष्ट्र को एक संक्षिप्त संदेश देकर प्रधानमंत्री ने चुप्पी साध ली। पर यह खामोशी निर्णायक निकली—भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक कर जो पराक्रम दिखाया, उसे दुनिया ने सराहा।

पुलवामा हमला:
टीवी पर आकर देश को भरोसा दिलाने के बाद मोदी फिर मौन हो गए। इसके बाद भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर हमला कर प्रतिशोध लिया। हमारे वीर विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी 24 घंटे के भीतर सुनिश्चित हुई—यह मोदी की रणनीतिक खामोशी की ही ताकत थी।

गलवान संघर्ष:
जब लद्दाख के गलवान घाटी में चीनी सैनिकों से खूनी झड़प हुई, तब भी प्रधानमंत्री ने कोई आक्रामक बयान नहीं दिया। परंतु उनकी चुप्पी के पीछे एक सशक्त रणनीति कार्य कर रही थी। चीन जैसे दादागिरी वाले राष्ट्र को वैश्विक स्तर पर बैकफुट पर लाने का श्रेय कहीं न कहीं भारत की इस रणनीतिक खामोशी को जाता है। जी7 जैसे मंचों पर भारत की प्रभावशाली उपस्थिति इस विश्वास को और भी पुष्ट करती है।
ये सभी उदाहरण यह स्पष्ट करते हैं कि जब-जब नरेंद्र मोदी खामोश हुए हैं, तब-तब देश ने कुछ ऐतिहासिक और अप्रत्याशित निर्णय देखे हैं। आज, सौ करोड़ से अधिक भारतीय उन्हें अपना नेता मानते हैं और स्वयं को 'मोदीभक्त' कहने में गर्व महसूस करते हैं। यदि कभी मोदी ने डोनाल्ड ट्रम्प की तरह सोशल मीडिया पर बेबाकी से लिखना शुरू कर दिया, तो विरोधियों की हालत का अनुमान लगाया जा सकता है। मोदी-शाह की भाजपा पारंपरिक राजनीति से अलग एक ऐसी कार्यशैली पर विश्वास करती है, जो कांटे से कांटा निकालना जानती है।
  Yugvarta
Previous News
0 times    0 times   
(1) Photograph found Click here to view            | View News Gallery


Member Comments    



 
No Comments!

   
ADVERTISEMENT






Member Poll
कोई भी आंदोलन करने का सही तरीका ?
     आंदोलन जारी रखें जनता और पब्लिक को कोई परेशानी ना हो
     कानून के माध्यम से न्याय संगत
     ऐसा धरना प्रदर्शन जिससे कानून व्यवस्था में समस्या ना हो
     शांतिपूर्ण सांकेतिक धरना
     अपनी मांग को लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ाना
 


 
 
Latest News
डॉ. जयशंकर की डेनमार्क यात्रा, हरित परिवर्तन
हर विधानसभा में एक मिनी स्पोर्ट्स स्टेडियम
एक देश, एक चुनावः छह माह में
उत्तराखंड : राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने हेमकुण्ट
मतदाताओं की सुविधा को देखते हुए निर्वाचन
उत्तराखंड : सीएम धामी ने 112 नवनियुक्त
 
 
Most Visited
Operation Sindoor : ऑपरेशन सिंदूर पर MEA
(284 Views )
‘Justice Served’ : India Launches ‘Operation Sindoor’,
(283 Views )
प्रो. के.जी. सुरेश को मिली इंडिया हैबिटेट
(278 Views )
भारत और पाकिस्तान युद्धविराम पर सहमत :
(264 Views )
पाकिस्तानी हमला नाकाम, भारत ने पहली बार
(240 Views )
हमारी सहनशीलता का कोई नाजायज फायदा नहीं
(234 Views )