Bhagat Singh Birth Anniversary / महात्मा गांधी चाहते तो क्या भगत सिंह की फांसी टाल सकते थे?
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Yugvarta
, Sep 28, 2023 08:42 PM 0 Comments
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Delhi :
Bhagat Singh Birth Anniversary: गांधी वापस जाओ’ के नारों का शोर था. गुस्से से भरे नौजवान उन्हें काले झंडे दिखा रहे थे. भगत सिंह -सुखदेव-राजगुरु अमर रहें की हुंकार के साथ फांसी के फंदे से उन्हें न बचाने का वे गांधी पर आरोप लगा रहे थे. नाराजगी चरम पर थी. कांग्रेस के कराची सम्मेलन का यह मंजर था. सम्मेलन के तीन दिन पहले 23 मार्च 1931 की शाम लाहौर जेल में सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई थी.
महात्मा गांधी ने अपनी बात कही, “कोई संदेह नही होना चाहिए कि मैंने भगत सिंह और उनके साथियों को बचाना नही चाहा. मैंने भरसक प्रयास किए. लेकिन मैं चाहता हूं कि आप उनकी गलती महसूस करें. उनका रास्ता गलत और निरर्थक था. मैं पिता जैसे अधिकार के साथ नौजवानों को बताना चाहता हूं कि हिंसा सिर्फ नारकीय यातना लाती है.”
फांसी के पहले और फिर बाद में भी महात्मा गांधी पर बार-बार सवाल उठते रहे. कांग्रेस के भीतर-बाहर और जनता के एक बड़े हिस्से की ओर से यह शिकायत होती रही कि गांधी अकेले व्यक्ति थे, जिनका प्रभाव इस फांसी को रोक सकता था. सुभाष चंद्र बोस की अगुवाई में नौजवानों ने मांग की थी कि वायसराय इरविन से समझौते की शर्त में भगत सिंह, सुखदेव, राज गुरु की फांसी के फैसले की वापसी जोड़ी जाए. बोस का कहना था, “अगर वायसराय तैयार न हों तो वार्ता ही न की जाए या फिर समझौता तोड़ दिया जाए.”
क्या गांधी की कोशिशें थीं आधी-अधूरी?
17 फरवरी 1931 से शुरू गांधी-इरविन वार्ता 5 मार्च तक चली. 18 फरवरी को गांधी ने इरविन से कहा, “इसका हमारी वार्ता से कोई सम्बन्ध नही है. आपको अनुचित भी लग सकता है. लेकिन वर्तमान माहौल को आप बेहतर बनाना चाहते हैं, तो भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी को आपको टाल देना चाहिए.” महात्मा गांधी के मुताबिक, “वायसराय ने मसले को इस तरीके से उठाने पर खुशी जाहिर की. कहा कि सजा को बदला जाना तो मुश्किल है. लेकिन उसे टाले जाने पर विचार किया जा सकता है.”
इरविन ने उसी दिन सेक्रेटरी ऑफ स्टेट को लिखा,”यद्यपि गांधी हमेशा से फांसी की सजा के विरोधी रहे हैं लेकिन उन्होंने सजा टाले जाने पर ही जोर दिया. उनका कहना था कि फांसी से अमन-चैन पर असर पड़ेगा.” राष्ट्रपिता ने दूसरी बार इरविन के सामने इस मसले को 19 मार्च 1931 को उठाया. कराची के कांग्रेस अधिवेशन के पहले समझौते के नोटिफिकेशन के सिलसिले में यह मुलाकात थी. मुलाकात खत्म होने के बाद बाहर निकलते समय उन्होंने इरविन से कहा,” मैंने अखबारों में 24 मार्च को फांसी देने की तारीख देखी है.”