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SC: ‘तीन महीने में बिल पर फैसला लें राष्ट्रपति’, सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर जगदीप धनखड़ नाराज़
Go Back | Yugvarta , Apr 17, 2025 06:09 PM
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News Image DELHI : 
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिल मंजूर करने की समयसीमा तय की है. इस पर उप-राष्ट्रपति ने नाराजगी जाहिर की है. उन्होंने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिले विशेषाधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24x7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है. बता दें, अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को अधिकार मिलते हैं कि वे पूर्ण न्याय करने के लिए किसी को भी निर्देश दे सकता है फिर चाहे वह कोई भी मामला हो.


उन्होंने कहा कि चुनी हुई सरकार ही लोकतंत्र में सबसे अहम मानी जाती है. सभी संस्थाओं को अपनी-अपनी सीमाओं में रहकर ही काम करना होगा. उन्होंने साफ-साफ कहा कि कोई भी संस्था संविधान के ऊपर नहीं हैं.


राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए बिलों पर प्रेसिडेंट को तीन महीने के अंदर फैसला लेना होगा. तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में आठ अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने ये ऐतिहासिक फैसला लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विधानसभा से भेजे गए बिल पर राज्यपाल को एक महीने के अंदर फैसला लेना होगा.


राष्ट्रपति के पास कंप्लीट वीटो का अधिकार नहीं है
सुप्रीम कोर्ट ने इसी दौरान राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की. फैसला तो अदालत ने आठ अप्रैल को लिया था लेकिन आदेश की कॉपी अदालत द्वारा 11 अप्रैल की रात को अपलोड किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला देते हुए कहा था कि राज्यपाल द्वारा भेजे गए बिल के केस में राष्ट्रपति के पास कंप्लीट वीटो या फिर पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है. राष्ट्रपति के फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है. न्यायपालिका बिल की संवैधानिकता का फैसला न्यायपालिका करेगी.
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