उत्तराखंड: राज्य स्थापना दिवस: 22 साल में 11 मुख्यमंत्रियों के बाद भी प्रदेश का प्ररिदृष्य में कुछ खास नहीं बदलाव , पलायन और बेरोजगारी का संकट बरकरार
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Yugvarta
, Nov 08, 2022 05:19 PM 0 Comments
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देहरादून : एक राज्य के तौर पर उत्तराखंड का 22 साल का सफर पूरा हो गया है. इन सालों में कुछ हासिल करना भले ही शेष रह गया हो, लेकिन कई आयाम भी स्थापित हुए हैं। खासकर एजुकेशन, मेडिकल एजुकेशन, खेती-बागवानी और इन्फ्रा स्ट्रक्चर के क्षेत्र में राज्य अग्रणी होने की दिशा में बढ़ा है. तरक्की की मिसाल यह है कि 1 करोड़ 10 लाख की आबादी वाले इस छोटे से राज्य में आईआईएम भी है और आधा दर्जन मेडिकल कॉलेज भी. सड़कों का नेटवर्क भी बढ़ रहा है तो तीर्थों का विकास भी एक अहम पहलू बना हुआ है. हालांकि पहाड़ों
सालों में मिले 11 मुख्यमंत्री, सिर्फ 1 CM ने पूरा किया 5 साल का कार्यकाल
तक अब भी विकास की लहर नहीं पहुंची है और आपदाओं को लेकर अब भी सटीक सिस्टम नहीं बनने की गुंजाइश बनी हुई है.
उत्तराखंड के 22 साल के सफर में प्रदेश को 11 मुख्यमंत्री मिले हैं। भाजपा ने सात मुख्यमंत्री दिए हैं, तो कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश को तीन मुख्यमंत्री दिए हैं। हालांकि, भाजपा शासन के पांच साल के कार्यकाल में पहली बार उत्तराखंड में तीन-तीन मुख्यमंत्री मिले हैं। चौंकाने वाली बात है कि सभी मुख्यमंत्रियों में से सिर्फ कांग्रेस के पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी ही अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाए थे। ऐसे में वोटरों के सामने भी दुविधा रहती है कि उनके द्वारा चुने गए नेता को सदन में भेजने का क्या फायदा जब बार-बार प्रदेश का मुखिया बदला जा रहा है
9 नवम्बर 2000 को जन्मा उत्तराखंड 22वें साल में प्रवेश कर चुका है. इन सालों में यहां बारी-बारी से बीजेपी और कांग्रेस की सत्ता ही रही है. इन 21 सालों के सफर पर निगाह डालें तो, राज्य ने काफी कुछ हासिल भी किया है. राज्य बनने से पहले उत्तराखंड में सिर्फ एक मेडिकल कॉलेज हुआ करता था, लेकिन अब 6 हैं और 3 मेडिकल कॉलेज पाइपलाइन में हैं. यही नहीं, छोटे से राज्य में आईआईएम के साथ ही एनआईटी भी है. कई नई यूनिवर्सिटियां भी बनी हैं. कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल कहते हैं कि रोज़गार, पर्यटन, शिक्षा और पलायन को लेकर नीतियां बनीं, जिन पर अमल भी हुआ. नतीजा ये है कि राज्य विकास के सफर पर आगे बढ़ रहा है.
उत्तराखंड को बने 22 साल का समय हो गया, लेकिन राज्य आंदोलनकारियों के सपनों का उत्तराखंड आज भी नहीं बन पाया. पहाड़ों पर पलायन और बेरोजगारी संकट आज बना हुआ है. कई सरकारें आईं और गईं. लेकिन इन मुद्दों पर किसी भी सरकार ने सही कदम नहीं उठाया. आलम ये है कि 21 साल गुजरने पर भी पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी का संकट हल होने के बजाय और अधिक बढ़ गया है.
उत्तराखंड अक्सर प्राकृतिक आपदाओं के साथ अपने पर्यटन और खूबसूरती की वजह से सुर्खियों में रहता है. लेकिन इस राज्य की एक ऐसी कहानी भी है जिसके बारे में आप शायद ही जानते हों. प्रदेश में करीब 3900 गांवों से पलायन हो गया है और करीब 1700 ऐसे भूतिया गांव है, जहां कोई रहता ही नहीं है
दस मार्च को जिस 'सरप्राइज पैकेज' के साथ तीरथ सिंह रावत ने उत्तराखंड सरकार की कमान संभाली थी, वो जादू महज चार महीने में ही हवा हो गया। अब जब तीरथ सिंह रावत विदा हो रहे हैं तो उनके नाम उत्तराखंड में सबसे कम दिन सीएम रहने का रिकॉर्ड दर्ज हो चुका है। यही नहीं वो ऐसे मुख्यमंत्री के तौर पर भी याद किए जाएंगे, जो एक भी दिन सदन का सामना नहीं कर पाया। राष्ट्रीय स्तर पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह भी कुछ इसी तरह बिना संसद का सामना किए ही विदा हो गए थे। लेकिन, तीरथ महज 114 दिनों में ही उनका विकट गिर गया
भाजपा शासन के पांच साल के कार्यकाल में पहली बार उत्तराखंड में तीन-तीन मुख्यमंत्री मिले हैं। चौंकाने वाली बात है कि सभी मुख्यमंत्रियों में से सिर्फ कांग्रेस के पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी ही अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाए थे। ऐसे में वोटरों के सामने भी दुविधा रहती है कि उनके द्वारा चुने गए नेता को सदन में भेजने का क्या फायदा जब बार-बार प्रदेश का मुखिया बदला जा रहा है।
दस मार्च को जिस 'सरप्राइज पैकेज' के साथ तीरथ सिंह रावत ने उत्तराखंड सरकार की कमान संभाली थी, वो जादू महज चार महीने में ही हवा हो गया। अब जब तीरथ सिंह रावत विदा हो रहे हैं तो उनके नाम उत्तराखंड में सबसे कम दिन सीएम रहने का रिकॉर्ड दर्ज हो चुका है। यही नहीं वो ऐसे मुख्यमंत्री के तौर पर भी याद किए जाएंगे, जो एक भी दिन सदन का सामना नहीं कर पाया। राष्ट्रीय स्तर पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह भी कुछ इसी तरह बिना संसद का सामना किए ही विदा हो गए थे। लेकिन, तीरथ महज 114 दिनों में ही उनका विकट गिर गया।
आपको बता दें कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री नवप्रभात ने बताया था कि मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत विधानसभा में निर्वाचित नहीं हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के छह महीने के अंदर ही उन्हें सदन की सदस्यता हरहाल में लेनी होगी। नवप्रभात के अुनसार, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम,151ए के तहत सरकार के एक साल के कम कार्यकाल की स्थिति में उपचुनाव नहीं किया जा सकता है। ऐसे में तीरथ सिंह रावत का नौ सितंबर के बाद मुख्यमंत्री पद पर बने रहना मुश्किल होगा।
उत्तराखंड में विधायकों के निधन के बाद दो विधानसभा सीटें रिक्त चल रही हैं, जबकि भाजपा सरकार का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म हो रहा है। नवप्रभात की मानें, भाजपा हाईकमान को एक बार फिर उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का चेहरा बदलना पड़ेगा। वहीं दूसरी ओर, सल्ट उपचुनाव के परिणाम सामने आने के बाद अब सीएम तीरथ सिंह रावत के चुनावी पत्ते का इंतजार बढ़ गया है। तीरथ को नौ सितंबर तक विधानसभा की सदस्यता लेनी है। इस लिहाज से उन्हें इसी महीने अपने लिए चुनावी क्षेत्र का भी चयन करना होगा।
अब ज़रूरत किस बात की है?
खासकर पहाड़ी इलाकों को वो तरजीह नहीं मिली, जिसकी दरकार थी. यही वजह है कि परिसीमन के बाद पहाड़ों से विधानसभा सीटें कम हुई हैं और मैदानों में बढ़ी हैं, जिससे साफ है कि पहाड़ से पलायन रुका नहीं है. वहीं, आपदा प्रबंधन और पूर्वानुमान को लेकर तरक्की की ज़रूरत बनी हुई है. ऐसे में अब ज़रूरत इस बात है कि पहाड़ों में शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ आवाजाही का मज़बूत ढांचा खड़ा किया जाए, ताकि उत्तराखंड आदर्श राज्य बनने की तरफ बढ़ सके.
कोश्यारी का रिकॉर्ड टूटा: उत्तराखंड के बीस साल के सफर में वर्तमान सीएम तीरथ सिंह रावत सहित अब तक दस सरकारें बन चुकी हैं। इसमें अब तक सबसे कम 122 दिन सीएम रहने का रिकॉड वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के नाम दर्ज था। कोश्यारी 30 अक्तूबर 2001 से एक मार्च 2002 तक मुख्यमंत्री रहे। हालांकि उनके कार्यकाल के अंतिम दो महीनों के दौरान प्रदेश में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू रही। इस कारण व्याहारिक तौर पर उन्हे काम करने के लिए करीब सवा दो महीने का समय ही मिल पाया। लेकिन अब वर्तमान सीएम तीरथ सिंह रावत ने यह रिकॉर्ड तोड़ दिया है। तीरथ बीती दस मार्च को सीएम बने थे और अब दो जुलाई को उन्होंने इस्तीफा सौंप दिया है। इस कारण उनकी सत्ता महज 114 दिन ही टिक पाई। जो अब तक का सबसे कम कार्यकाल है।
मुख्यमंत्री कार्यक्राल
नित्यानंद स्वामी - 09 नवंबर 2000 से 29 अक्तूबर 2001
भगत सिंह कोश्यारी - 30 अक्तूबर 2001 से 01 मार्च 2002
नारायण दत्त तिवारी - 02 मार्च 2002 से 07 मार्च 2007
भुवन चंद्र खूडूडी - 07 मार्च 2007 से 26 जून 2009
डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक - 27 जून 2009 से 10 सितंबर 2011
भुवन चंद्र खंडूडी - 11 सितंबर 2011 से 13 मार्च 2012
विजय बहुगुणा - 13 मार्च 2012 से 31 जनवरी 2014
हरीश रावत - 01 फरवरी 2014 से 27 मार्च 2016
हरीश रावत - 21 अप्रैल 2016 से 22 अप्रैल 2016
हरीश रावत - 11 मई 2016 से 18 मार्च 2017
त्रिवेंद्र सिंह रावत - 18 मार्च 2017 से --09 मार्च 2021
तीरथ सिंह रावत- 10 मार्च 2021 से 02 जुलाई 2021