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मराठी भाषा को लेकर विवाद :20 साल बाद एक मंच पर उद्धव और राज ठाकरे
Go Back | Yugvarta , Jul 05, 2025 08:21 PM
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News Image MUMBAI :  डेस्क। महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर उबाल है। दो दशकों बाद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक ही मंच पर नजर आए और एक सुर में भाजपा पर हमला बोला। अवसर था ‘आवाज मराठीचा’ नामक एक विशाल रैली का, जहां महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने के आरोपों को लेकर तीखा सवाल दागा।

राज ठाकरे ने कहा, लालकृष्ण आडवाणी मिशनरी स्कूल में पढ़े थे। क्या इससे उनके हिंदुत्व पर शक किया जा सकता है? उन्होंने यह टिप्पणी भाजपा पर कटाक्ष करते हुए की, जो मौजूदा समय में हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाने

शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने शनिवार को कई सालों के बाद एकसाथ मंच साझा किया। इस रैली को लेकर शिवसेना (यूबीटी) की पूर्व मेयर और प्रवक्ता किशोरी पेडनेकर का बयान आया। उन्होंने इसे खुशी का दिन बताया

को लेकर विवादों में है।

हिंदुत्व पर उठते सवालों का दिया जवाब
राज ठाकरे ने मंच से साफ कहा कि भाषा का संबंध किसी की आस्था या राष्ट्रभक्ति से नहीं जोड़ा जा सकता। मेरे पिता और चाचा अंग्रेजी माध्यम से पढ़े थे। शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने भी अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाई की थी और एक अंग्रेजी अखबार में काम किया था, लेकिन उन्होंने मराठी अस्मिता से कभी समझौता नहीं किया। क्या हम उनके हिंदुत्व पर सवाल उठा सकते हैं?

राज ने यह भी याद दिलाया कि आडवाणी जी ने कराची के सेंट पैट्रिक्स स्कूल में पढ़ाई की थी, जो एक मिशनरी संस्थान है। क्या भाजपा अब उनके हिंदुत्व पर भी उंगली उठाएगी?

हिंदी भाषा विवाद क्या है?
यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने एक आदेश जारी कर कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में लागू करने की घोषणा की। 16 अप्रैल को जारी इस आदेश के बाद तीखी प्रतिक्रिया सामने आई, जिसके बाद 17 जून को सरकार को अपने निर्णय में बदलाव करते हुए हिंदी को वैकल्पिक भाषा बनाना पड़ा।


राज ठाकरे ने इस फैसले को मराठी अस्मिता पर हमला बताया और कहा कि भाषा थोपने की राजनीति बंद होनी चाहिए। महाराष्ट्र में मराठी का स्थान सर्वोपरि है और रहेगा।

20 साल बाद ठाकरे बंधु एक मंच पर
इस रैली की सबसे खास बात यह रही कि करीब 20 सालों के सियासी मतभेदों के बाद ठाकरे बंधु राज और उद्धव एक मंच पर आए। यह दृश्य न केवल राजनीतिक दृष्टि से ऐतिहासिक रहा, बल्कि आने वाले मुंबई नगर निगम चुनावों में मनसे और शिवसेना (उद्धव गुट) की संभावित साझेदारी की अटकलों को भी बल मिला है।
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