पहाड़ों पर हर साल हादसे, जानिए- वजह और क्या है इस समस्या का समाधान
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Yugvarta
, Jul 30, 2021 12:24 PM 0 Comments
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NEW DELHI : प्रकृति से छेड़छाड़ के सबक हमें कई रूप में मिल रहे हैं, लेकिन इन्हें गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। पहाड़ों पर अवैध निर्माण, अवैध कटान और अवैध खनन भी आपदाओं का अहम कारण है। इससे पहाड़ों की बनावट तो प्रभावित हो रही है, पहाड़ खोखले भी हो रहे हैं। यही कारण है कि हर मौसम में जानमाल का नुकसान सहना पड़ रहा है। हर हादसे के बाद आपदा प्रबंधन की बातें होती हैं, योजनाएं बनाई जाती हैं, धरातल पर पहुंचने से पहले ही फिर हादसा हो जाता है।
पहाड़ों पर हर साल हादसे
पहाड़ों पर हर साल हादसे हो रहे
पहाड़ों पर हर साल हादसे हो रहे हैं लेकिन इनसे कोई सबक नहीं लिया जाता है। यह सही है प्राकृतिक आपदाएं रोकी नहीं जा सकती हैं लेकिन पूर्व आपदा प्रबंधन से इनसे होने वाले नुकसान को अवश्य कम किया जा सकता है।
हैं, लेकिन इनसे कोई सबक नहीं लिया जाता है। यह सही है प्राकृतिक आपदाएं रोकी नहीं जा सकती हैं, लेकिन पूर्व आपदा प्रबंधन से इनसे होने वाले नुकसान को अवश्य कम किया जा सकता है। बरसात में नदी नाले उफान पर होते हैं, बादल फटने जैसी घटनाएं भी होती हैं। नदी-नालों के किनारे रह रहे लोगों को समय रहते हटाया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश में इस साल 13 जून के बाद बरसात के कारण हुए हादसों में 150 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।
नदी नालों के किनारे लोगों को बसने क्यों दिया जाता है
कांगड़ा जिले के रुलेहड़ व किन्नौर जिले के बटसेरी के हादसे के जख्म भरे भी नहीं थे कि बुधवार को लाहुल-स्पीति व कुल्लू जिले में बादल फटने व बाढ़ की चपेट में आने से 16 लोग बह गए। इनमें दो को बचा लिया गया है। सात लोगों के शव मिल गए हैं जबकि सात लोगों का अभी पता नहीं चल पाया है। किन्नौर के बटसेरी में पहाड़ दरकने से नौ पर्यटक दब गए थे और कांगड़ा के रुलेहड़ में 10 लोगों की मौत हो गई थी। फिर वही सवाल है कि नदी नालों के किनारे लोगों को बसने क्यों दिया जाता है? अगर इस पर पहले ही ध्यान दिया जाए तो इस तरह के हादसों से बचा जा सकता है।
प्रकृति से की जा रही छेड़छाड़ का परिणाम
पहाड़ों पर किसी तरह के निर्माण से पूर्व भूविज्ञानियों की सलाह अवश्य ली जानी चाहिए। नदियों व नालों के किनारे व पहाड़ों की ढलानों पर किसी तरह के निर्माण की इजाजत नहीं होनी चाहिए। यदि सभी पहलुओं को देखकर नियोजित तरीके से निर्माण किया जाए तो हादसों की आशंका कम रहती है। हिमाचल प्रदेश में प्रकृति से की जा रही छेड़छाड़ का परिणाम आपदा के रूप में भुगतना पड़ रहा है। यदि कुछ सावधानियां बरती जाएं तो नुकसान कम किया जा सकता है।