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बदलता दौर
Go Back | Yugvarta , Aug 22, 2025 12:13 PM
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News Image Lucknow : 
इस बदलते दौर ने हम मनुष्यों को इतना
हिला कर रख दिया है जो कि कल्पना से भी परे है। यहां मैं बात कर रही हूं बदलते दौर के साथ
बदलती हुई हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार,
हमारी आदतें और इन्हीं के साथ बदलती हुई
हमारी आज की पीढ़ी जो कि सबसे बड़ी
समस्या बन गई है।
  हमारी बदलती हुई संस्कृति जो कि हम इन
नई पीढ़ी की सोच और विचार , बदलते पहनावे,
बदलता हुआ व्यवहार और नई संस्कृति को
अपनाते हुए और इन्हीं में ढलते हुए देख रहे
है ,जो कि हम जानते हैं कि हमारी नई पीढ़ी
को गहरे गड्ढे में धकेल रहा है ,पर हम हाथ
पर हाथ रख कर देख रहे हैं और चाह कर भी
कुछ नहीं कर पा रहे।
हमारे और हमारे पूर्वजों या घर के पुराने सदस्यों
ने जो संस्कार हमे दिया थे वह हम आजकल
की पीढ़ी तक पहुंचने में विफल हो रहे है।
हम जो कि उन्नीसवीं सदी के लोग या कहे
की माता पिता है हमने अपनी पुरानी सभ्यता
को निरंतर चलाते हुए रखा। चाहे वो वार्तालाप
का सलीका हो या समाज में उठने बैठने का।
जब हमने अपना पुरानी सभ्यता और संस्कारों
को नहीं भूले तो हमारी आजकल की पीढ़ी जो
की इक्कीसवीं सदी की पीढ़ी है वह इन संस्कारो
को क्यों नहीं अपनाते हुए आगे बढ़ रही।
        क्या इसमें हमारी गलती है या गलती
उन साधनों की है जो हमारे वैज्ञानिकों द्वारा
अपने कार्यों को आसानी और सटीक बनाने
के लिए की गई है। हम भी आजकल की
पीढ़ी के साथ ही जी रहे है पर हमने तो
उन विकृतियों को नहीं अपने अंदर सामने
दिया जो हमारी नई पीढ़ी अपने अंदर समाहित
करते जा रही है।
अगर मैं स्पष्ट रूप से कहूं तो हां जो नए संसाधन
है जैसे मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट और आजकल
के स्मार्ट साधन जिन्हें हम ए आई कहते है। इन्हीं
संसाधनों ने बेशक हमारे काम आसान किए है,
लेकिन इन्हीं संसाधनों ने हमारी आजकल की
पीढ़ी को उन संस्कारो , सभ्यताओं और उस
दौर को जो कि हमने बदलते हुए देखा है उन्हें
कई हद तक प्रभावित किया है।
आजकल अखबारों में प्रायः ये खबरें छपती
रहती है कि किसी किशोर अवस्था के बालक
ने अपनी मां को मोबाइल ना देने पर उसका
कत्ल कर दिया , किसी लड़की ने अपनी जान
दे दी वो भी इसलिए क्योंकि उसके माता पिता
ने उसे टैबलेट मांगने पर नहीं दिया। ये ही नहीं
कुछ सालों पहले एक वीडियो बहुत वायरल
हुआ था कि एक किशोर ने अपने पूरे घर को
तोड़ फोड़ दिया था क्योंकि उसके माता पिता
ने उसे मोबाइल में गेम खेलने के लिए देने से मना
कर दिया था।
यह सब घटनाएं निरंतर बढ़ती ही जा रही है
जो कि हमें हैरान और परेशान कर देती है।
एक ये भी एक घटना है कि, एक लड़के को उसकी
मां परीक्षा की तैयारी करने को कहती है और
उससे मोबाइल छीन लेती है तो वह लड़का
जो कि अभी अठारह साल का है वह अपनी
मां को थापड़ जड़ देता है और घर छोड़ कर
निकल जाता है।
हम उन्नीसवीं सदी के मां बाप है और हमने
अपनी पुरानी सोच को ही कायम कर रखा
है कि अपने माता पिता की डांट सुनना है,
उन्हें जवाब नहीं देना है , अपना पहनावा
भी संस्कारों के विरुद्ध नहीं जाना चाहिए।
अपनी सोच को बदलते दौर के साथ नहीं
बदलना है। हमे भी अपने बच्चों को वही
सब संस्कार देने है जो हमारे माता पिता ने
उनके माता पिता से पाए थे।
लेकिन हम हताश है क्योंकि हमारी ये नई पीढ़ी
इन बातों को अपनाना तो दूर समझना भी नहीं
चाहती। जब हम मंदिर जाते थे तब अपने माता
पिता को देख कर उनका अनुसरण करते थे कि
कैसे पूजा की जाती है कैसे धार्मिक अनुष्ठानों
में जा कर या घर पर कैसे देवी देवताओं की पूजा की जाती है । पर हमारी आजकल की पीढ़ी तो जैसे भगवान को भी ए आई के आगे कुछ नहीं समझती।
यह सोच हमने तो आपने बच्चों को नहीं दी फिर
उनके के अंदर ऐसी धारणा कैसे पनपी। क्यों कि
हम सभी  माता पिता अपने बच्चों को आगे के जीवन में सफल बनते देखना चाहता है इसीलिए वह दिनरात मेहनत कर के अपनी ईच्छाओं को
दूर रख कर पहले अपनी संतानों की ईच्छाओं
की पूर्ति करते है। हम माता पिता अपना मन
मार कर अपना संतानों को आजकल की सारी
हाइ टेक्नोलॉजी के संसाधनों को जुटा देते हैं
ताकि हमारे बच्चे जमाने के साथ आगे बढ़े।
पर क्या इसी कारण हमारे बच्चों का रुझान पढ़ाई की तरफ कम होता जा रहा है और इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स की तरफ ज्यादा। क्या ये नई टेक्नोलॉजी हमारे बच्चों के अंदर से उन संस्कारों को निकाल रही है जो कि हमने अपने माता पिता से सिखा था।
 पर ये बात पूर्णरूप से सत्य भी नहीं क्योंकि
समाज में आजकल भी ऐसे बच्चे हैं जो कि
आई आई टी , नीट, यू पी एस सी , कानूनी
पढ़ाई हो , या अन्य  किसी भी  छेत्र में
अपना परचम लहरा रहे है। और अगर इनका
पैमाना या माप दंडों को देखे तो यह बच्चे खास
कर गरीब घरों से ज्यादा आते है। क्योंकि
कमल कीचड़ में ही खिलता है ये बात तो आप
सभी जानते होंगे।
तो क्या इसमें हमारी ही गलती है कि हम अपने
बच्चों को सारे साधन देने के बाद भी उनके
अंदर संस्कार पनपने देने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं। क्या कमी हमारे अंदर ही है कि हम वह वातावरण अपने बच्चों को नहीं दे पा रहे जो कि उन्हें खिलने नहीं दे रहा।
     यह बहुत बड़ा प्रश्न है। क्या आपको नहीं
लगता की हमारे बच्चे ही कहीं आस्तीन का सांप
तो नहीं बनते जा रहे। इसमें किसकी गलती है
हाइ टेक्नोलॉजी की या हमारे द्वारा ही कोइ
गलती हो रही है। तो फिर हमे क्या करना
चाहिए जिससे हमारे बच्चे संस्कारी बने वह
आर्थिक मूल्यों को समझे , उनके अंदर सद्भावना
आए , वह एक जिम्मेदार नागरिक बने और
देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा रखें।
क्या इस बदलते दौर के साथ हमें भी अपने
अंदर परिवर्तन लाना चाहिए कि जैसा चल रहा
है चलने दे या इसकी रोकथाम करने के लिए
कोई ठोस कदम उठाएं।
लेकिन इसके लिए हमें क्या कदम उठाना चाहिए,यह कई माता पिताओं के लिए गंभीर विषय बन गया है। ये सारी भावनाएं मेरे अंदर उठती है,
क्या आपके अंदर भी ?????

लेखिका: सविता महाराज
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