आखिरकार वैज्ञानिकों ने सुलझा ही ली वाई क्रोमोसोम की गुत्थी
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Yugvarta
, Aug 25, 2023 09:59 AM 0 Comments
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Delhi :
इंसानों में मौजूद जीन समूह को समझने में एक अनुवांशिक पहेली दशकों से वैज्ञानिकों को उलझा रही थी. यह पहेली थी, पुरुषों में मौजूद वाई क्रोमोसोम. अब पहली बार वैज्ञानिकों ने वाई क्रोमोसोम के समूचे क्रम को असेंबल कर लिया है.शोधकर्ताओं ने 23 अगस्त को पहली बार इंसानी वाई क्रोमोसोम का समूचा सीक्वेंस पेश किया. नेचर पत्रिका में छपे दो ताजा शोधों में इस खोज का पूरा ब्योरा दिया गया है.
इसमें एक दिलचस्प पहलू यह भी सामने आया कि इंसानों के यौन विकास में केंद्रीय भूमिका निभाने के साथ ही साथ, वाई क्रोमोसोम इंसानी जीव विज्ञान के बाकी कई पक्षों में भी योगदान देता है. मसलन, कैंसर का जोखिम और इसकी गंभीरता का स्तर. इसके अलावा वाई क्रोमोसोम प्रजनन और विकासक्रम को भी प्रभावित करता है.
क्रोमोसोम्स का विज्ञान
शुक्राणु और अंडाणु, दोनों के मेल से भ्रूण बनता है. लेकिन भ्रूण का नर या मादा होना, ये कैसे तय होता है? इसे तय करते हैं, क्रोमोसोम्स. हमारा शरीर कोशिकाओं से बना है. हर कोशिका के केंद्र में न्यूक्लियस नाम का एक हिस्सा होता है. इसी के भीतर एक शृंखलानुमा संरचना होती है, जिसे क्रोमोसोम्स कहते हैं. यह दरअसल वो ढांचा है, जो हमारे जीन्स को संजोकर रखता है.
हमारे शरीर की हर कोशिका में 23 जोड़े, यानी कुल 46 क्रोमोसोम्स होते हैं. 23 जोड़े का यह गणित बड़ा दिलचस्प है क्योंकि हमें अपने आधे क्रोमोसोम्स मां से और आधे पिता से मिलते हैं. 1 से लेकर 22वें जोड़े के क्रोमोसोम्स, यानी शुरुआती 22 जोड़े ऑटोसोम्स कहलाते हैं.
23वां जोड़ा सेक्स क्रोमोसोम्स कहलाता है. यही 23वां जोड़ा नर या मादा होने की कुंजी है. लड़कियों में दो एक्स (XX) क्रोमोसोम्स होते हैं. वहीं लड़कों में एक एक्स और एक वाई (XY) क्रोमोसोम होते हैं. कभी-कभार इसमें कुछ अपवाद भी हो सकते हैं.
क्यों मुश्किल था यह काम
पिता से बेटे को मिलने वाले इस वाई क्रोमोसोम के जीन्स, प्रजनन से जुड़े अहम पक्षों में भूमिका निभाता है. मसलन, शुक्राणु (स्पर्म) बनना. लेकिन अपनी बेहद जटिल संरचना के कारण इसे सीक्वेंस कर पाना बहुत मुश्किल साबित हो रहा था. यह इंसानी जीनोम का आखिरी क्रोमोसोम है, जिसे सीक्वेंस किया जाना बाकी था. वाई क्रोमोसोम की संरचना बेहद जटिल है. इसीलिए इसके सीक्वेंस को समूचा सुलझा पाना, मुकम्मल तौर पर इसका खाका खींच पाना खासा मुश्किल बना हुआ था.
"नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ" की व्याख्या से इस मुश्किल को यूं समझिए. सीक्वेंसिंग डेटा को असेंबल करना, छोटी-छोटी कतरनों में कटी एक मोटी किताब पढ़ने जैसा है. अगर किताब में सारी पंक्तियां अलग और विशिष्ट हों, तो फिर पंक्तियों के क्रम को समझना आसान होगा. लेकिन अगर किताब में एक पंक्ति लाखों बार दोहराई गई हो, तो कतरनों के मूल क्रम को बूझ पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा.
वैसे तो इंसान के सभी क्रोमोसोम्स में दोहराव है, लेकिन. ये वैसी ही बात हुई कि किसी किताब का आधा हिस्सा, गिनी-चुनी पंक्तियों के बार-बार दोहराव से भरा पड़ा हो.
ह्युमन जीनोम प्रोजेक्ट
नए सीक्वेंस के कारण वाई क्रोमोसोम की लंबाई के 50 फीसदी से ज्यादा खाली पड़े हिस्सों को भरा जा सका है. इस शोध का नेतृत्व "टेलोमिअर-टू-टेलोमिअर कंसोर्टियम" के शोधकर्ताओं की एक टीम ने किया. इसकी फंडिंग अमेरिका स्थित नेशनल ह्यूमन जीनोम रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनएचजीआरआई) ने की.
इंसानी जीनोम की मैपिंग, मानव इतिहास के सबसे बड़े और महत्वाकांक्षी कोशिशों में से एक है. इसी के तहत एक "ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट" नाम का एक विस्तृत अंतरराष्ट्रीय अभियान शुरू हुआ. 2001 में इस प्रोजेक्ट ने पहले इंसानी जीनोम की मैपिंग में कामयाबी पाई. लेकिन ना तो यह समूची थी, ना सटीक. इसमें कई रिक्त स्थान थे. फिर 2003 में इस प्रोजेक्ट ने एक जीनोम सीक्वेंस दिया, जिसमें इंसानी जीनोम का 90 फीसदी से ज्यादा हिस्सा मापा गया था.