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UP Politics: 17 OBC जातियों के 13 प्रतिशत वोट बैंक पर थी सपा की नजर, अब भाजपा सरकार के पाले में गेंद
Go Back | Yugvarta , Sep 01, 2022 05:26 PM
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News Image Uttar Pradesh :  दूसरों को नैया पार कराने वाले निषाद, केवट, मल्लाह सहित 17 अति पिछड़ी जातियां यदि आरक्षण को लेकर मझधार में फंसी रहीं तो उसकी वजह सिर्फ वही है जो अधिसूचनाएं निरस्त करते हुए उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की है।

चुनाव के इर्द गिर्द यह अधिकार से परे जाकर अधिसूचनाएं सिर्फ 13 प्रतिशत आबादी के वोट के लिए जारी की गईं। इन्होंने आस भले ही बंधाई, लेकिन सफलता का किनारा मिलना ही नहीं था। इस तरह सपा का दांव एक बार फिर मात खा गया है और गेंद अब भाजपा सरकार के पाले में है।

उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक लगभग 52 प्रतिशत आबादी

UP Politics उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक लगभग 52 प्रतिशत आबादी पिछड़ा वर्ग की है। इसमें अलग-अलग जातियों पर अलग-अलग राजनीतिक दलों का प्रभाव है। ऐसे में 17 अति पिछड़ी जातियां ऐसी हैं जिन्हें अपने पाले में खींचने का प्रयास दल करते रहे हैं।

पिछड़ा वर्ग की है। इसमें अलग-अलग जातियों पर अलग-अलग राजनीतिक दलों का प्रभाव है। ऐसे में 17 अति पिछड़ी जातियां ऐसी हैं, जिन्हें अपने पाले में खींचने का प्रयास दल करते रहे हैं।

पिछड़ा वर्ग के नेता के रूप में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए 2005 में अपना दांव चला। उन्होंने इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का निर्णय लिया, जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। बाद में यूपी सरकार ने उस निर्णय को वापस भी ले लिया।

प्रदेश में जब बसपा प्रमुख मायावती की सरकार बनी तो उन्होंने भी इन जातियों के आरक्षण के संबंध में तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस सरकार को पत्र लिखा, लेकिन वह मामला अटका रहा। दरअसल, वह इन 17 जातियों को आरक्षण देने के पक्ष में तो थीं, लेकिन चाहती थीं कि दलितों के आरक्षण का कोटा 21 से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया जाए। सरकारें बदलती रहीं, लेकिन आरक्षण की यह गेंद रह-रहकर उछलती रही।

अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार बनी तो 21 व 22 दिसंबर, 2016 को विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने दो अधिसूचनाएं जारी कीं। उस पर भी उच्च न्यायालय ने स्थगनादेश दे दिया। इसे अन्य याची ने 2017 में खत्म कराया।

स्थगनादेश खत्म होने के बाद उसके पालन में 24 जून, 2019 को योगी सरकार ने भी हाई कोर्ट के निर्णय का संदर्भ लेते हुए अधिसूचना जारी कर दी। 17 जातियों को अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल करते हुए प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश कर दिया गया, लेकिन तमाम तकनीकी कारणों से प्रमाण पत्र जारी नहीं हो पा रहे थे।

लंबे समय से 17 जातियों के आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे दलित शोषित वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष संतराम प्रजापति का कहना है कि मामला इन्क्ल्यूजन का नहीं, बल्कि इंडिकेशन का है। 1950 की जो अधिसूचना है, उसमें यह जातियां अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल हैं। सिर्फ उसे लागू कराना है।

उत्तराखंड सरकार ने 16 दिसंबर, 2013 को उसी अधिसूचना को पुन: जारी किया तो वहां व्यवस्था लागू हो गई, जबकि उत्तर प्रदेश में पूर्व की सरकारों ने अधिसूचना ऐसे जारी की, जैसे वह नई व्यवस्था करने जा रहे हों। वह कहते हैं कि योगी सरकार की नीयत इसलिए साफ नजर आ रही है, क्योंकि उसने काउंटर एफिडेविट नहीं लगाया। अब वह चाहे तो 1950 की अधिसूचना को री-सर्कुलेट कर इन जातियों को आरक्षण का लाभ दिला सकती है।
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