83 Review: एक नामुमकिन सपने के सच होने की कहानी है रणवीर सिंह की '83', यहां पढ़ें पूरा रिव्यू
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Yugvarta
, Dec 23, 2021 11:35 AM 0 Comments
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Mumbai : 25 जून 1983 को भारतीय क्रिकेट टीम ने लंदन के लॉर्ड्स स्टेडियम में वह इतिहास रचा, जिस पर हर भारतीय को गर्व है। अंडरडॉग टीम माने जानी वाली भारतीय क्रिकेट टीम ने कप्तान कपिल देव की अगुवाई में क्रिकेट विश्व कप में दो बार विजेता रही वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम को हरा कर देश का परचम लहराया था। कबीर खान के निर्देशन में बनी यह फिल्म उसी शानदार जीत का जश्न मनाती है।
कहानी शुरू होती है, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के छोटे से दफ्तर से जहां टीम के मैनेजर पीआर मान सिंह (पंकज त्रिपाठी) टीम के बैग्स लेने के लिए
अंडरडॉग टीम माने जानी वाली भारतीय क्रिकेट टीम ने कप्तान कपिल देव की अगुवाई में क्रिकेट विश्व कप में दो बार विजेता रही वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम को हरा कर देश का परचम लहराया था। कबीर खान के निर्देशन में बनी यह फिल्म उसी शानदार जीत का जश्न मनाती है।
आते हैं। दफ्तर में मौजूद लोग मजाक उड़ाते हैं कि कपिल देव (रणवीर सिंह) की कप्तानी में टीम खाली हाथ ही वापस आने वाली है। अपनी टीम पर खुद बीसीसीआई को भरोसा नहीं होता है, इसलिए उनकी वापसी की फ्लाइट टिकट्स फाइनल से पहले की बुक कर दी जाती हैं। उस साल क्रिकेट विश्व कप की मेजबानी कर रहे इंग्लैंड में जो आई कार्ड पीआर मान सिंह को दिया जाता है, उसमें फाइनल्स में भारतीय टीम को लॉर्ड्स के मैदान में जाने की अनुमति नहीं होती है।
मान सिंह, कपिल से आकर कहते हैं कि 35 साल पहले हम लोग आजादी जीते, मगर इज्जत जीतना अभी बाकी है। अपनी मां के संस्कारों और अपने इरादों के पक्के कपिल यह तय करके भारत से चले होते हैं कि वह विश्व कप जीतकर ही लौटेंगे। कबीर ने जीत की इस 38 साल पुरानी जिद को पर्दे पर बखूबी उतारा है। इस फिल्म की लंबी-चौड़ी स्टार कास्ट के साथ उन्होंने पूरे विश्व कप को दो घंटे 43 मिनट में समेटने की सफल कोशिश की है। इसमें खिलाड़ियों के आपसी संबंध, ग्रीन रूम की हलचल, अहम मैच, भारत और जिम्बाब्बे के बीच हुआ वह यादगार मैच, जिसमें कपिल देव ने 138 बालों में 175 रनों की नॉटआउट शानदार पारी खेलते हुए वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाना शामिल रहा। बीच-बीच में टेलीविजन पर असली मैच की झलकियां रोमांच पैदा करती हैं। छत पर चढ़कर मैच देखने के लिए एंटिना ठीक करते हुए बार-बार पूछना आया या नहीं... पिछली सदी के आठवें दशक के लोगों को पुरानी यादों में ले जाएगा। सांप्रदायिक दंगों का मुद्दा दिखाकर क्रिकेट को हर धर्म से जोड़ने वाले सीन गैरजरूरी लगते हैं।
फिल्म का पहला हाफ धीमा है, लेकिन दूसरा हाफ कुर्सी से बांधे रखेगा। कबीर ने किसी भी खिलाड़ी की निजी जिंदगी में जाने का रिस्क नहीं लिया। कप्तान का ग्रीन रूम में जाकर अपने खिलाड़ियों से फाइनल मैच से पहले यह कहना कि आज औकात से ज्यादा खेलना है, उस इज्जत को वापस पाने की चाह को दर्शाता है, जिसमें बार-बार यह कहा जाता है कि भारतीय टीम लक से फाइनल्स में पहुंच गई है। असीम मिश्रा की सिनेमैटोग्राफी सिनेमाहाल में बैठे हुए स्टेडियम का एहसास कराती है। वी हियर टू विन, वॉट एल्स वी हियर फॉर..., जब हम ये यूनिफॉर्म पहनकर ग्राउंड में उतरते हैं, तो हमारा एक ही मकसद होता है जान लगाकर देश के लिए खेलना... सुमीत अरोड़ा और कबीर खान के लिखे यह संवाद फिल्म में जान डालते हैं। रणवीर सिंह को फिल्म के अंत तक तलाशते रह जाएंगे, क्योंकि उन्होंने कपिल देव के किरदार को जीया है। कपिल की तरह नटराज शॉट लगाना हो, अपने मंगूस बैट से 175 रनों की शानदार पारी खेलनी हो या टूफी-फूटी अंग्रेजी बोलकर अपनी टीम को हंसाना या उनमें जोश भरना हो, यह सब रणवीर ने कर दिखाया है।
दीपिका छोटे से किरदार में भी प्रभावित करती हैं। भारतीय क्रिकेट टीम को दिए जाने वाले ताने सुनने के बाद भी सकारात्मक रहकर टीम का मनोबल बढ़ाने वाले मैनेजर का किरदार पंकज त्रिपाठी ने बखूबी निभाया है। पूर्व क्रिकेटर कृष्णमाचारी श्रीकांत के किरदार में जीवा मनोरंजन करते हैं। साकिब सलीम, ताहिर राज भसीन, जतीन सरना, एमी विर्क, हार्डी संधू समेत टीम के सभी कलाकारों ने अपने हिस्से का काम ईमानदारी से किया है। उस वक्त दस साल के रहे सचिन तेंदुलकर का फाइनल मैच देखकर यह कहना कि एक दिन मैं भी बड़ा होकर देश के लिए क्रिकेट खेलूंगा, तालियां बटोरता है। इंडिया जीतेगा... गाना जोश से भरपूर है, जो भावुक भी करता है।