अखिलेश के बयान पर सोशल मीडिया- दीपोत्सव पर दीयों का विरोध प्रजापति समुदाय की आजीविका पर हमला
अखिलेश के बयान पर भड़का सोशल मीडिया- यूजर्स बोले- रामभक्तों पर गोलियां चलवाने वालों को दीपोत्सव से परेशानी, हिंदू विरोध समाजवादी पार्टी की तुष्टीकरण राजनीति का एजेंडा

YUGVARTA NEWS
Lucknow, 21 Oct, 2025 09:22 PMलखनऊ। भारत के सबसे बड़े त्योहार दीपावली से पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के “क्रिसमस से सीखने” वाले बयान को लेकर सोशल मीडिया पर पिछले कुछ दिनों से जबरदस्त उबाल है। नेटीजंस ने दीपोत्सव की तुलना क्रिसमस से करने पर अखिलेश यादव को आड़े हाथ लिया और आरोप लगाया कि वे लगातार हिंदू परंपराओं और आस्थाओं पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते रहे हैं। समाजवादी पार्टी अपने गठन के साथ ही हमेशा से तुष्टीकरण की राजनीति के तहत हिंदू घृणा का माहौल फैलाकर मुसलमानों का समर्थन प्राप्त करने के प्रयास में रहती है। सोशल साइट्स वह चाहे फ़ेसबुक हो, एक या फिर एक्स (पूर्व में ट्विटर), इंस्टाग्राम, थ्रेड- हर जगह अखिलेश के बयान पर तीखे पोस्ट और क्रिएटिव देखने को मिल रहे। अब तक अलग अलग प्लेटफॉर्म्स पर हजारों की संख्या में पोस्ट सामने आ चुके हैं। इन पोस्ट्स में दीपोत्सव को आस्था और अस्मिता का उत्सव बताते हुए अखिलेश यादव को आइना दिखाने के प्रयास नजर आ रहे।
सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने यह याद दिलाया कि अखिलेश यादव ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण का विरोध किया था और जब अयोध्या में प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा का ऐतिहासिक अवसर आया, तो उन्होंने निमंत्रण स्वीकार करने से मना कर दिया। लेकिन अब उनकी पार्टी के एक नेता की तरफ से दीपोत्सव में निमंत्रण नहीं मिलने का आरोप लगाया जा रहा। एक यूजर ने लिखा- “रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में न जाने वाला व्यक्ति अब दीपोत्सव पर नसीहत दे रहा है। यही इनका असली चेहरा है।”
एक अन्य यूजर ने लिखा- “काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का विरोध करने वाले अखिलेश यादव को याद रखना चाहिए कि यही (दीपोत्सव) भारत की आत्मा है, जिसे वे बार-बार ठेस पहुँचाते हैं। अखिलेश शायद भूल रहे कि जब धरती पर ईसाई और इस्लाम धर्म का जन्म भी नहीं हुआ था- भारत में दीप पर्व मनाया जा रहा।" कुछ यूजर्स ने कहा कि दीपावली पर दिए न जलाने की नसीहत देकर समाजवादी पार्टी के नेता- प्रजापति समुदाय की आजीविका के खिलाफ भी मुहिम चला रहे हैं। दिए समेत मिट्टी के बर्तन बनाने और उन्हें बेंचने का काम प्रजापति समुदाय करता है। कुछ लोग इसे समाजवादी पार्टी के "पीडीए" की हकीकत बता रहे और दावा कर रहे कि असल में अखिलेश के पीडीए में अतीक अहमद के अलावा, सैफई परिवार के अलावा किसी और की जगह नहीं है।
कुछ यूजर्स ने समाजवादी पार्टी के पारिवारिक आयोजनों का हवाला देते हुए कहा कि “रमजान में पति-पत्नी रोजा इफ्तार की पार्टियों में बढ़-चढ़कर जाते हैं, मस्जिदों में बैठकें करते हैं, लेकिन जब बात मंदिरों या हिंदू पर्वों और सनातन की हजारों साल पुरानी आस्था पर होती है तब वे जानबूझकर मुसलमानों को खुश करने के लिए हिंदू पर्व और त्योहारों की आलोचना करते हैं।"
सोशल मीडिया पर वायरल हैं मुलायम और अखिलेश यादव के बयान
पुराने प्रसंगों को जोड़ते हुए कई यूजर्स अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव के हिंदू विरोधी पुराने बयानों को पोस्ट कर रहे। इसमें मुलायम सिंह यादव का पुराना बयान है, जिसमें उन्होंने कहा था- "देश की एकता बचाने के लिए गोली चलवानी पड़ी(अयोध्या में कारसेवकों पर)। मुलायम सिंह यादव का एक और बयान सोशल मीडिया पर चर्चा में है जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर देश की एकता के लिए और भी मारना पड़ा (हिंदू कारसेवकों को)तो सुरक्षाबल मारते।" लोग कह रहे कि जिसके पिता खुद रामद्रोही थे, उन अखिलेश से आखिर क्या ही उम्मीद की जा सकती है।
एक यूजर्स ने पोस्ट किया- "मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि "राम मंदिर आंदोलन को देश तोड़ने की साज़िश है" जिसको विरासत में रामद्रोह मिला है, वो इसी तरह की बात करेगा।" कुछ यूजर्स ने उनके पिता मुलायम सिंह यादव की सरकार के दौरान हुए अयोध्या गोलीकांड की भी चर्चा की। एक यूजर ने लिखा- “रामभक्तों पर गोली चलवाने वाली सरकार के वारिस से और क्या उम्मीद की जा सकती है?”
अखिलेश पर तंज कसते हुए एक यूजर ने लिखा- "गौशाला बनाते हैं तो बदबू फैलती है, हम लोग इत्र की फैक्ट्री लगाकर खुशबू फैलाते हैं- ऐसा बयान देने वाले अखिलेश से और उम्मीद ही क्या जी जा सकती है।" यूजर्स की राय में सनातन और प्रभु श्रीराम का अपमान अखिलेश परिवार की पुरानी परम्परा है। दूसरे यूजर्स ने टिप्पणी की कि “दीपोत्सव को फिजूलखर्ची कहने वाले ये वही लोग हैं जिन्होंने सैफई महोत्सव में करोड़ों रुपए खर्च करके भद्दे नाच-गाने कराए थे। जब अयोध्या में लाखों दीप जलते हैं, तो इन्हें धर्म याद आता है।”
अयोध्या में दीपोत्सव भारत के गर्व का पर्व
कई यूजर्स ने कहा कि दीपोत्सव अब उत्तर प्रदेश की नहीं, बल्कि पूरे देश की सांस्कृतिक पहचान बन गया है। यह आयोजन न केवल श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि इससे मिट्टी के दीये बनाने वाले लाखों कुम्हार परिवारों को आजीविका भी मिलती है। एक यूजर ने लिखा- “जिन्हें दीपोत्सव पर ऐतराज है, वे असल में उस प्रकाश से डरते हैं जो अंधकार को समाप्त करता है।”
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। यूजर्स का कहना है कि “अयोध्या का दीपोत्सव किसी दल का नहीं, बल्कि पूरे भारत की संस्कृति का प्रतीक है, जिस पर नसीहत नहीं, गर्व किया जाना चाहिए।”
No Previous Comments found.